अगर है ज़िंदगी इक जश्न तो ना-मेहरबाँ क्यों है By ज़िंदगी, Sher << बरसेंगी आज रहमतें आमद है ... अधूरी वफ़ाओं से उम्मीद रख... >> अगर है ज़िंदगी इक जश्न तो ना-मेहरबाँ क्यों है फ़सुर्दा रंग में डूबी हुई हर दास्ताँ क्यों है Share on: