अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई By Sher << सारी बस्ती में फ़क़त मेरा... बाँग-ए-तकबीर तो ऐसी है &#... >> अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई ज़िंदगी मजबूरियों का नाम हो कर रह गई Share on: