कब से मैं सफ़र में हूँ मगर ये नहीं मा'लूम By Sher << मेरी आँखें हैं तिरे हुस्न... मैं हाथों में ख़ंजर ले कर... >> कब से मैं सफ़र में हूँ मगर ये नहीं मा'लूम आने में लगा हूँ कि मैं जाने में लगा हूँ Share on: