अजीब ही था मिरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़ By Sher << भूल कर भी कभी न याद किया इस ख़ौफ़ में कि खुद न भटक... >> अजीब ही था मिरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़ बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया Share on: