वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर' By Sher << वामाँदगान-ए-राह तो मंज़िल... मेरे दर्द में ये ख़लिश कह... >> वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर' जागना रात भर मुसीबत है whether in blissful union or in separation staying up all night, is a botheration Share on: