कुछ इतने हो गए मानूस सन्नाटों से हम 'अख़्तर' By Sher << कुछ मुझे भी यहाँ क़रार नह... किसी से मुझ को गिला क्या ... >> कुछ इतने हो गए मानूस सन्नाटों से हम 'अख़्तर' गुज़रती है गिराँ अपनी सदा भी अब तो कानों पर Share on: