मुझे दोनों जहाँ में एक वो मिल जाएँ गर 'अख़्तर' By Sher << ज़िंदगी शायद इसी का नाम ह... की रिया से न शैख़ ने तौबा >> मुझे दोनों जहाँ में एक वो मिल जाएँ गर 'अख़्तर' तो अपनी हसरतों को बे-नियाज़-ए-दो-जहाँ कर लूँ Share on: