किस तरह 'अमानत' न रहूँ ग़म से मैं दिल-गीर By Sher << मेरे अंदर का पाँचवाँ मौसम मुख़ालिफ़ों को भी अपना बन... >> किस तरह 'अमानत' न रहूँ ग़म से मैं दिल-गीर आँखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत Share on: