ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर' By Sher << मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आ... तुम मुझे चाहो न चाहो लेकि... >> ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर' सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है Share on: