ये दो-दिली में रहा घर न घाट का 'अंजुम' By Sher << मैं हर दीवार के दोनों तरफ... न पूछ उस की दिल-अफ़्सुर्द... >> ये दो-दिली में रहा घर न घाट का 'अंजुम' बुतों को कर न सका ख़ुश ख़ुदा को पा न सका Share on: