आस्तीनों की चमक ने हमें मारा 'अनवर' By Sher << अज़ाब-ए-बर्क़-ओ-बाराँ था ... कभी कभी तो इक ऐसा मक़ाम आ... >> आस्तीनों की चमक ने हमें मारा 'अनवर' हम तो ख़ंजर को भी समझे यद-ए-बैज़ा होगा Share on: