आज मग़्मूम क्यूँ हो ऐ 'ताबाँ' By Sher << कहाँ मुमकिन है पोशीदा ग़म... बाज़ीगाह-ए-दार-ओ-रसन में ... >> आज मग़्मूम क्यूँ हो ऐ 'ताबाँ' कुछ तो बोलो कि माजरा क्या है Share on: