अपने दरवाज़े पे बैठा सोचता रहता हूँ मैं By Sher << आज तक सुब्ह-ए-अज़ल से वही... जंग में क़त्ल सिपाही होंग... >> अपने दरवाज़े पे बैठा सोचता रहता हूँ मैं मेरा घर अज्दाद की बारा-दरी का कर्ब है Share on: