मंज़िल है अपनी अपनी 'क़लक़' अपनी अपनी गोर By Sher << मिसाल-ए-आइना हम जब से हैर... मैं वो मय-कश हूँ मिली है ... >> मंज़िल है अपनी अपनी 'क़लक़' अपनी अपनी गोर कोई नहीं शरीक किसी के गुनाह में Share on: