और ज़िक्र क्या कीजे अपने दिल की हालत का By Sher << ऐ संग-ए-आस्ताँ मिरे सज्दो... पहले दरवाज़े पे दस्तक दे ... >> और ज़िक्र क्या कीजे अपने दिल की हालत का कुछ बिगड़ती रहती है कुछ सँभलती रहती है Share on: