और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ By Sher << दश्त की प्यास किसी तौर बु... रख लिया बार-ए-अमानत सर पे... >> और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह Share on: