बदन ख़ुद अपनी ही तज्सीम कर नहीं पाते By Sher << बजती हुई ख़ून की रवानी अपने मंज़र से अलग होता नह... >> बदन ख़ुद अपनी ही तज्सीम कर नहीं पाते क़रीब आया तो आँखों को ख़्वाब मैं ने दिया Share on: