बहुत दिनों में ये उक़्दा खुला कि मैं भी हूँ By Sher << चमन में न बुलबुल का गूँजे... कहाँ तमाम हुई दास्तान ... >> बहुत दिनों में ये उक़्दा खुला कि मैं भी हूँ फ़ना की राह में इक नक़्श-ए-जावेदाँ की तरह Share on: