बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर By Sher << आँख पड़ती है कहीं पाँव कह... बस जान गया मैं तिरी पहचान... >> बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर दिल इस लिए भी ख़ज़ाना शुमार होने लगा Share on: