बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है By Sher << बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार ... बहुत दूर तो कुछ नहीं घर म... >> बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है हाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है Share on: