बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम By Sher << मसरूफ़-ए-ग़म हैं कौन-ओ-मक... धूप में निकलो घटाओं में न... >> बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है Share on: