बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की By Sher << खींच ली थी इक लकीर-ए-ना-र... अब ज़मीं पर क़दम नहीं टिक... >> बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की सदियों जैसे दिन हैं रातें पत्थर की Share on: