क्यूँ उलझते हो हर इक बात पे 'बेख़ुद' उन से By Sher << लज़्ज़त कभी थी अब तो मुसी... हस्र काबा पे क्या है देर ... >> क्यूँ उलझते हो हर इक बात पे 'बेख़ुद' उन से तुम भी नादान बने जाते हो नादान के साथ Share on: