बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई By Sher << मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने ... मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छ... >> बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई मैं इस बहार में ये राख भी उड़ा दूँगा Share on: