चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और By Sher << अपनी जन्नत मुझे दिखला न स... किसी मंज़िल में भी हासिल ... >> चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और दिन कहीं और गुज़रते थे तो रातें कहीं और Share on: