दरख़्त-ए-ज़र्द में जैसे हरा सा रहता है By Sher << इसी दुनिया में है वो दूसर... मसीहा मान बैठा है वो ख़ुद... >> दरख़्त-ए-ज़र्द में जैसे हरा सा रहता है वो ठीक उसी तरह मुझी में भरा सा रहता है Share on: