देख कर तुझ को क़दम उठ नहीं सकता अपना By Sher << तुम्हारी याद से ये रात कि... असर हो या न हो वाइज़ बयाँ... >> देख कर तुझ को क़दम उठ नहीं सकता अपना बन गए सूरत-ए-दीवार तिरे कूचे में Share on: