देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़ By Sher << कहीं आँखें कहीं बाज़ू कही... सुकूत बढ़ने लगा है सदा ज़... >> देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़ उफ़ एक मेरा सीना है उस पर हज़ार दाग़ Share on: