देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर By Sher << हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-... बर्क़ की शो'ला-मिज़ाज... >> देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर इम्कान-ए-इल्तिफ़ात से हम खेलते रहे Share on: