दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ By Sher << बड़े घरों में रही है बहुत... कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़... >> दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ कुछ इलाज इस का भी ऐ शीशा-गिराँ है कि नहीं Share on: