दिल-कशी तेरे तसव्वुर की रही रोज़-अफ़्ज़ूँ By Sher << दोनों हाथों से मसर्रत को ... दिल टूट के ही आख़िर बनता ... >> दिल-कशी तेरे तसव्वुर की रही रोज़-अफ़्ज़ूँ बाहमी रब्त का हर चंद वो नक़्शा न रहा Share on: