दिल्ली में अपना था जो कुछ अस्बाब रह गया By Sher << 'जलील' आने लगी है... उस ने छू कर मुझे पत्थर से... >> दिल्ली में अपना था जो कुछ अस्बाब रह गया इक दिल को ले के आए हैं उस सरज़मीं से हम Share on: