दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को By Sher << तिरे बदन की नज़ाकतों का ह... बदलेगी काएनात मिरी बात मा... >> दिन भर के झमेलों से बचा लाया था ख़ुद को शाम आते ही 'अश्फ़ाक़' मैं टूटा हुआ क्यूँ हूँ Share on: