दिनों महीनों आँखें रोईं नई रुतों की ख़्वाहिश में By Sher << बहर-अयादत आए वो लेकिन क़ज... इंकार ही कर दीजिए इक़रार ... >> दिनों महीनों आँखें रोईं नई रुतों की ख़्वाहिश में रुत बदली तो सूखे पत्ते दहलीज़ों में दर आए Share on: