दो चार बरस जितने भी हैं जब्र ही सह लें By Sher << अव्वल-ए-इश्क़ की साअत जा ... इक बला कूकती है गलियों मे... >> दो चार बरस जितने भी हैं जब्र ही सह लें इस उम्र में अब हम से बग़ावत नहीं होती Share on: