दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं By Sher << मैं क्या हूँ कौन हूँ क्या... शहर वाले नज़र आते हैं मोह... >> दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं इस पर भी वो समझे न तो क़दमों पे झुकें क्या Share on: