डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द By Sher << मैं अपने घर को बुलंदी पे ... ये क्या कि रोज़ पहुँच जात... >> डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द नींद आती है मुझी कूँ मिरे अफ़्साने में Share on: