ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते By दुनिया, ग़म, Sher << रोज़ सुनता हूँ मैं हँसने ... अयादत होती जाती है इबादत ... >> ऐ ग़म-ए-दुनिया तुझे क्या इल्म तेरे वास्ते किन बहानों से तबीअ'त राह पर लाई गई Share on: