ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे By Sher << ये क्या ज़रूर है मैं कहूँ... सुलगती धूप में जल कर फ़क़... >> ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे मरने का है मक़ाम या जीने का महल Share on: