इक घर भी सलामत नहीं अब शहर-ए-वफ़ा में By Sher << कोई हयात के मअ'नी बता... काबा भी घर अपना है सनम-ख़... >> इक घर भी सलामत नहीं अब शहर-ए-वफ़ा में तू आग लगाने को किधर जाए है प्यारे Share on: