एक रुत्बा है तिरे दर पे गदा-ओ-शह का By Sher << दिन में आने लगे हैं ख़्वा... लोग नफ़रत की फ़ज़ाओं में ... >> एक रुत्बा है तिरे दर पे गदा-ओ-शह का आसमाँ कासे लिए फिरता है मेहर-ओ-मह का Share on: