एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़ By Sher << किसे दोस्त अपना बनाएँ हम ... ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाह... >> एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़ आसमाँ-दर-आसमाँ-दर-आसमाँ क्यूँ रत-जगे हैं Share on: