एक सितम और लाख अदाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने By Sher << ग़ुंचों के मुस्कुराने पे ... दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौ... >> एक सितम और लाख अदाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने तिरछी निगाहें तंग क़बाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने Share on: