करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़' By Sher << एक दरिया को दिखाई थी कभी ... आतिश का शेर पढ़ता हूँ अक्... >> करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़' मिरा साजन बहार-ए-अंजुमन है Share on: