फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं By Sher << हम उस धरती के बाशिंदे थे ... पहना दे चाँदनी को क़बा अप... >> फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं मस्जिदें सूनी पड़ी हैं भट्टियाँ आबाद हैं Share on: