फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर By Sher << हम रूह-ए-सफ़र हैं हमें ना... तीर पे तीर निशानों पे निश... >> फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर साक़ी तिरे हाथों से जो साग़र नहीं मिलता Share on: