फ़ुर्क़त-ए-यार में इंसान हूँ मैं या कि सहाब By Sher << तीर मत देख मिरे ज़ख़्म को... बिखरी हुई है यूँ मिरी वहश... >> फ़ुर्क़त-ए-यार में इंसान हूँ मैं या कि सहाब हर बरस आ के रुला जाती है बरसात मुझे Share on: