फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस ने By Sher << फिर तुझे छू के देखता हूँ ... मुझे यक़ीं तो बहुत था मगर... >> फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस ने बस एक महीना ही तो रमज़ान रहेगा Share on: