ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ By Sher << ग़म-ए-आरज़ू का 'हसरत&... दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम ... >> ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ वो तिरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है Share on: