ग़ैरों की शिकस्ता हालत पर हँसना तो हमारा शेवा था By Sher << ग़म दे गया नशात-ए-शनासाई ... इक शम-ए-आरज़ू की हक़ीक़त ... >> ग़ैरों की शिकस्ता हालत पर हँसना तो हमारा शेवा था लेकिन हुए हम आज़ुर्दा बहुत जब अपने घर की बात चली Share on: